(((( मैया, मैं ही तो राम हूँ )))) माता यशोदा अपने लाल को रात्री में शयन से पूर्व, श्री राम-कथा सुना रहीं हैं- . "सुनि ...
माता यशोदा अपने लाल को रात्री में शयन से पूर्व, श्री राम-कथा सुना रहीं हैं-
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"सुनि सुत, एक कथा कहौं प्यारी"
नटखट श्री कृष्ण भी कुछ कम नहीं, तुरन्त तत्पर हो गये भोली माता के मुँह से अपनी ही राम-कथा सुनने को, देखूँ तो माता कैसे सुनाती है ?
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इतना ही नहीं बड़े प्रसन्न मन से ध्यानपूर्वक कथा भी सुन रहे हैं और साथ-साथ माता के प्रत्येक शब्द पर-
"चतुर सिरोमनि देत हुँकारी"
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हुँकारी भी भरते जा रहें हैं कि माता का ध्यान कथा सुनाने से हटे नहीं। माता यशोदा ने पूरी राम-कथा विस्तार पूर्वक सुनाई और नटखट लाल ने हुँकारी भर-भर के सुनी।
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कथा सुनाते-सुनाते माता यशोदा सीता-हरण प्रसंग पर पहुँची, माता ने कहा- और तब रावण बलपूर्वक जानकी जी का हरण कर के ले जाने लगा...
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इतना सुनना था कि लाल की तो नींद भाग गई, तुरन्त उठ बैठे और ज़ोर से पुकार लगाई-
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लक्ष्मण ! लक्ष्मण ! कहाँ हो ? लाओ मेरा धनुष दो ! धनुष ! वाण दो!
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माता भौचक्की !! हे भगवान ! ये क्या हो गया मेरे लाल को ?
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आश्चर्य में भरकर अपने लला से पूछ बैठी- क्या हो गया तुझे ? मैं तुझे कहानी सुना कर सुलाने का प्रयास कर रही हूँ और तू है कि उल्टे उठ कर बैठ गया।
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मैया का लाडला नन्हा सा लला बोला- माँ ! सौमित्र से कहो मेरा धनुष-वाण लाकर दे मुझे।
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मैं अभी रावण का वध कर देता हूँ, मेरे होते कैसे सीता का हरण कर लेगा।
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मैया अवाक ! हतप्रभ ! कैसी बातें कर रहा है यह। बोली- उसे तो राम ने मारा था।
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राम त्रेतायुग में हुये थे और वे तो परमब्रह्म परमात्मा थे। तू क्यों उसे मारेगा ?
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मैया के हृदय में हलचल मच गई, तनिक सा भय भी।
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नटखट कान्हा ने मैया की ओर देखा, मैया को कुछ अचम्भित कुछ भयभीत देख उन्हें आनन्द आया।
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मैया को और अचंम्भित करने के लिये बोले- मैं ही तो राम हूँ, मैं ही त्रेतायुग में हुआ था और मैं ही परमब्रह्म परमात्मा हूँ।
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अब मैया का धैर्य छूट गया, भय से विह्वल होकर बोली- ऐसा मत बोल कनुआ... मत बोल। कोई भगवान के लिये ऐसा बोलता है क्या ? पाप लगेगा।
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नटखट कान्हा मैया की दशा देख, मन ही मन आन्नदित होते हुये बोले- सच कह रहा हूँ मैया मैं राम और दाऊ भैया सौमित्र थे।
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अब तो मैया के हृदय में यह शंका पूर्ण रूपेण घर कर गई कि मेरे लला पर कोई भूतप्रेत आ गया है जो यह अंट-शंट बके जा रहा है।
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इसी बीच रोहिणी जी आ गईं और यशोदा जी को अति व्याकुल चिंतित व किंकर्तव्यविमूढ़ सा देख कर ढाढँस बधाने लगीं-
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संभव है आज दिन में किसी नाटक में इसे राम का पात्र दे दिया होगा, इसी से यह स्वयं को राम समझ बैठा है
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हाँ, यही हुआ होगा... है भी तो काला-कलूटा बिल्कुल राम की भाँति- यशोदा जी की सांस में सांस आई।
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तभी नटखट नन्हे कान्हा पुनः कुछ तर्क प्रस्तुत करने को तत्पर हुये... कि झुझँलाई हुई मैया ने हाथ का थप्पड़ दिखाते हुये कहा-
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चुप सोजा नहीं तो अभी एक कस के जड़ दूँगी। अब नटखट लला ने मैया के आँचल में दुबक कर चुपचाप सो जाने में ही अपनी भलाई समझी... हाँ पिटना कोई समझदारी थोड़े ही है।
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कोटीश नमन वात्सल्यमयी माँ और नटखट ननहें सुत को।
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